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कोरोना, लॉकडाउन, और वर्क फ़्रॉम होम…..!

कोविड-19 ने जब से धरती पर कदम रखा है, तब से पूरी दुनिया में कोहराम मचा हुआ है. चीन के वुहांग शहर से जन्मा कोरोना ने धीरे-धीरे दुनिया के सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया, जिसकी वजह से न सिर्फ़ आम जन-जीवन में बदलाव हुआ, बल्कि इस महामारी ने पूरी दुनिया के जीने का तरीका ही बदल कर रख दिया. कोरोना महामारी के आने से पूरी दुनिया पर नेगिटिव प्रभाव तो हुआ ही है, इसके साथ कई लोगों ने इस आपदा में अवसर को ढूंढा और नए तरीके से जीवन को देखकर आगे बढ़ने के लिए नये आयामों को विकसित कर रहे हैं. 

 

आपको बता दें, कोरोना महामारी एक ऐसी बीमारी है जो एक कोरोना पॉजिटीव इंसान से दूसरा इंसान सम्पर्क में आने मात्र से फैल रही है. साथ ही, सबसे दुखद बात ये है कि इस बीमारी से बचने के अलावा कोई भी दवाई नहीं है. और बड़े बड़े वैज्ञानिक और डॉक्टर भी इसकी वैक्सीन बनाने में फेल साबित हो रहे है. दुनिया भर के ताकतवर देशों से लेकर हर छोटे बड़े देश इस वैक्सीन की खोज में लगा हुआ है, लेकिन अभी तक कोई भी देश कोरोना महामारी की वैक्सीन बनाने में सफल नहींं हुआ है. 

 

तो चलिए दोस्तों, आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से आपको बताते हैं कि कोरोना के आने से लोगों के दिमाग पर किस तरह के प्रभाव पड़े हैं. 

 

 कोरोना के आने से दिमाग पर पड़ने वाले असर- 

 

कोरोना के आने से लोग न सिर्फ शारीरिक रूप से पीड़ित हो रहे हैं, बल्कि इसका असर कोरोना से पीड़ित लोग या सभी सामान्य लोगों के दिमाग पर गहरा हो रहा है. लोगों के दिमाग पर कोरोना बेहद ही घातक असर डाल रहा है. ज़्यादातर लोग बिना कोरोना के सम्पर्क में आए भी सिर्फ़ डर की वजह से दिमागी रूप से बीमार हो रहे हैं. 

 

कोरोना से बचने के लिए लोगों का आम जन-जीवन बिल्कुल प्रकृति के खिलाफ हो गया. जी हां कोरोना से बचाव और कोरोना पॉजिटीव लोगों से दूरी बनाने के लिए लोगों को घर की चारदिवारी में कैद रहना पड़ा और अभी तक इसको लोग फॉलो भी कर रहे हैं. मगर, घर की चारदिवारी में बंद होने से लोगों का दिमाग डिप्रेशन, एंजॉयटी जैसी मानसिक बीमारी का शिकार हो रहा है. इससे उनके जीवन पर बुरा असर हो रहा है. लोग डिप्रेशन के चलते सुसाइड तक कर रहे हैं.

 

 

 

लॉकडाउन-  कोरोना के आने के बाद हर देश की सरकार ने इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए, लॉकडाउन का सहारा लिया. जिसमें इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर सब कुछ बंद कर दिया गया. लोगों जहां है वहीं बंद हो गए थे. इसकी वजह, कई देश के लोगों को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा.  खाने-पीने की चीज़ो से लेकर हर ज़रूरत की चीज़े कई लोगों तक पहुंच नहीं पाई थी और रोज कमाकर जीवन यापन करने वाले लोग, मजदूरों का जीवन के लिए यह लॉकडाउन ग्रहण बन गया था. भारत में लॉकडाउन का उल्टा असर देखने को मिला. जिसमें एक शहर से दूसरे शहर में पलायन करने वाले लोगों ने अपनो को खो दिया और खुद के जीवन को खतरे में डालकर अपने गांव जाने के लिए कई किलोमीटर की दूरी पैदल तय की. 

 

कोरोना से बचने के लिए जो सरकार ने लॉकडाउन का फ़ैसला लिया था उसमें सबसे ज़्यादा नुकसान गरीब लोगों को हुआ. साथ ही, सही तरीके से लॉकडाउन को प्रबंधित ना कर पाने और सरकारी सुविधाओं का सही ढंग से फ़ायदा गरीबों तक ना पहुंचाने में सरकार बुरी तरह से औंधे मुंह गिरी. 

 

लॉकडाउन की वजह से सिर्फ़ गरीबों को नुकसान हुआ ये कहना मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए नाइंसाफ़ी होगी. इस लॉकडाउन में नौकरी पेशा करने वाले मध्यमवर्गीय लोगों पर दोहरी मार पड़ी, जिसमें कई लोगों को ना तो पगार मिल पाई और ना ही वे लोग कोई सरकारी स्कीम का फ़ायदा उठा पाएं. इससे मध्यम वर्गीय परिवारों का आम जन-जीवन पर बुरा असर हुआ. लॉकडाउन के आने से कई बड़े बिज़नेसमैन और उनके परिवारों पर बुरा असर पड़ा. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री तो बिल्कुल खत्म सी हो गई थी, जिसके चलते कई बड़े फ़िल्म और टीवी सितारों ने पैसे या काम की कमी के चलते या घर में घंटो बंद रहने से डिप्रेशन की बीमारी से जूझने की वज़ह से सुसाइड तक कर लिया. एक तरह से यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कोरोना से बचने के लिए जो लॉकडाउन लगाया गया उसमें कई लोगों को ज़िंदगी से हाथ भी धोना पड़ा. मगर, भारत की 100 करोड़ के करीब की आबादी को कोरोना की चपेट में जाने से लॉकडाउन ने ही बचाया है. 

 

घर से काम करना (वर्क फ़्रॉम होम) –  कोरोना के आने के बाद और खासकर लॉकडाउन के बाद से ज़्यादातर ऑफ़िस का काम घर से ही किया जाने लगा. जिसमें सबसे ज़्यादा अहम भूमिका इंटरनेट निभा रहा है. इंटरनेट के चलते कोरोना काल 60 फ़ीसद दफ़्तरों का काम घर से हो रहा है. साथ ही, अब एक या दो साल के लिए कई बड़ी इंटरनेशनल कंपनियों ने तो घर से ही काम करने के लिए पॉलिसी तय कर ली है. 

 

घर से काम करना लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. जहां पहले सभी प्राइवेट नौकरी करने वाले लोगों को 9 घंटे की जॉब के लिए 12 से 13 घंटे खर्च करने पड़ते थे, जिसमें ऑफ़िस आने-जाने का समय से लेकर भागदौड़ शामिल थी. वहीं अब घर से काम करने पर ज़्यादातर लोगों के लिए आरामदायक साबित हो रहा है. 

 

लोग आराम से सोकर उठकर और अपने परिवार के साथ टाइम बिता कर भी लोग अपने ऑफ़िस का काम पूरी क्वालिटी के साथ पूरा कर रहे हैं. इससे ना सिर्फ़ एम्पलॉयी को फ़ायदा मिल रहा है, बल्कि कंपनियों की ऑफ़िस में आने वाली कोस्ट भी बच रही हैं. इसलिए, ज़्यादातर एमएनसी कंपनियां घर से ही काम करने को लेकर सहज हो रही है.  

 

मगर, दूसरी तरफ़ कई लोग ऐसे भी है जिन्हें घर से काम करने पर मानसिक दिक्कत महसूस कर रहे हैं. साथ ही, ऑफ़िस के लोगों से ज़्यादा कम्युनिकेशन नहीं होने से एक-दूसरे की बात को समझने में दिक्कत का भी सामना कर रहे हैं. एक डर यह भी जायज़ है कि अगर घर से काम करने का वर्क कल्चर हमेशा के लिए बन जाएगा, तो लोगों का मिलना-जुलना कतई बंद हो जाएगा. इससे ना सिर्फ़ लोगों के बीच के संबंध बनना खत्म हो जाएगा, बल्कि लोगों का दिमाग सीमित हो जाएगा और दिमाग का सीमित रहना, देश का विकास रूकने में भागीदार होगा.

 

ट्रैवल पर रोक लगना– कोरोना के आने से सबसे ज़्यादा नुकसान टूरिज़्म इंडस्ट्री को भी पहुंचा है. दुनिया जब से कोरोना की चपेट में आई है, तब से घूमने पर तो बिल्कुल सख्त तरीके से रोक लगा दी गई है. दुनिया का हर शख्स घर में कैद हो गया और टूरिज़्म का पत्ता तो बिल्कुल साफ़ सा हो गया. यहां तक कि अभी तक आधे से ज़्यादा लोग ट्रैवल नहीं कर रहे हैं. ट्रैवल पर रोक लगने से लोग पहले की बजाए बाहर नहीं जा पा रहे हैं. प्रकृति से खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं, जिससे लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं. महीनों से घर में रहने से लोगों के स्वभाव में बदलाव हुआ है, वे चिड़चिड़े होते जा रहे हैं. साथ ही, जो लोग ट्रैवल करने का शौक नहीं रखते है उन लोगों के लिए घर पर रहना अच्छा साबित हो रहा है. 

 

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