परिचय (Introduction)- हैल्लो दोस्तो, नमस्कार!
आज हम ये वीडियो उन लोगों के लिए लेकर आए हैं जो मेहनती हैं, साहसी हैं, लेकिन जानकारी की कमी से जूझ रहे हैं. कुल मिलाकर यह वीडियो खेती करने वाले लोग या खेती में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए लेकर आए हैं. तो आज का शानदार टॉपिक है- हाइड्रोपोनिक खेती.
‘हाइड्रोपोनिक खेती’ ये शब्द आपको सुनने में थोड़ा सा अजीब लग रहा होगा कि आखिर में हाइड्रपोनिक खेती क्या होती है? आपने सामान्य खेती के बारे में, जैसे खेतों में सब्ज़ियां, फलों और अनाज़ की खेती के बारे में तो सदियों से सुना होगा, मगर क्या आप जानते है कि देश में हाइड्रोपोनिक खेती का तेज़ी से विस्तार हो रहा है. जी हाँ, अगर आप भी किसान है या खेती के माध्यम से हर महीने 60 हज़ार से लेकर 80 हज़ार तक कमाई करना चाहते हैं, तो आपके लिए हाइड्रोपोनिक खेती के बारे में पूरी जानकारी पाना बेहद ही ज़रूरी है.
इसके साथ ही, अगर आपके पास रोजगार की कमी है लेकिन आप खेती के बारे में थोड़ी बहुत भी जानकारी रखते हैं, तो कमाई के हिसाब से इससे बढ़िया मौका आपके लिए कुछ भी नहीं हो सकता.
हाइड्रोपोनिक शब्द भले ही सुनने में थोड़ा मुश्किल लग रहा होगा, मगर इसकी खेती करना आपके लिए बेहद ही आसान है. यह खेती न सिर्फ़ आप कर सकते हैं, बल्कि आपके घर के बुर्जुग और महिलाएं भी कर सकती हैं.
भारत के कई इलाकों में किसान इस हाइड्रोपोनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं और लाखों की कमाई कर रहे हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती से जुड़े कुछ ज़रूरी सवाल-
जिन लोगों ने हाइड्रोपोनिक खेती के बारे में पहली बार सुना है या इस तकनीक के साथ अपना करियर बनाने की योजना बना रहे हैं उनके लिए कुछ सामान्य( Basic) सवाल ये हो सकते हैं. जैसे-
हाइड्रोपोनिक खेती क्या होती है?
हाइड्रोपोनिक खेती कैसे की जाती है. इस खेती का पूरा प्रोसेस क्या होता है?
इस खेती को करने के लिए किस तरह के तकनीकी सिस्टम की ज़रूरत होती है?
हाइड्रोपोनिक खेती करने के लिए कितनी लागत लगेगी और सरकार की तरफ़ से क्या सहायता मिलती है?
खेती करने के लिए कितनी जगह चाहिए?
इस खेती के लिए कौनसी जलवायु सही होती है?
पानी की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
इस खेती में कौनसे पोषक तत्व, कीटनाशक दवाईयां, और खाद्य पदार्थ इस्तेमाल किए जाते हैं?
इस खेती में पौधों का रख-रखाव या उनका ध्यान कैसे रखा जाना चाहिए?
इस खेती में कौनसे पेड़- पौधों की खेती होती है?
इस खेती से उगने वाले अनाज, फलों, और सब्ज़ियों की क्या कीमत होनी चाहिए और इस पर कितना मार्जिन कमाया जा सकता है?
इस खेती का इस्तेमाल करने के लिए बाज़ार कैसा है?
इस खेती को करने में क्या-क्या दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
इस खेती के करने से क्या निष्कर्ष निकलता है?
ऐसे कौनसे लोग हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में सफलता हासिल की है?
तो दोस्तों पहले चरण से शुरुआत करते हैं आपके सारे सवालों का जवाब देना. हाइड्रोपोनिक का पूरा प्रोसेस बताएंगे, ताकि आपको कदम-दर-कदम ऊपर दिए गए सवालों का जवाब खुद-ब-खुद मिल जाए.
जिन लोगों को अभी तक हाइड्रोपोनिक खेती के बारे में नहीं पता है उन लोगों को सबसे पहले आसान शब्दों में इस खेती का अर्थ समझाते हैं.
हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है बिना मिट्टी के और सिर्फ़ पानी के ज़रिए खेती करना. यह एक ऐसी आधुनिक खेती है जिसे पानी का इस्तेमाल करने के साथ-साथ जलवायु को नियंत्रित करके की जाती है. साथ ही, छोटी सी जगह में भी खेती करके बड़ा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. इस खेती को कोई भी, कहीं पर भी शुरू कर सकता है. आपको जलवायु, मिट्टी, मौसम किसी भी चीज़ के बारे में ज़्यादा टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं होती है.
हाइड्रोपोनिक खेती कैसे की जाती है
सबसे पहले इसके लिए हाइड्रोपोनिक फ़ार्म तैयार करना होगा. फलों और सब्ज़ियों की घर पर खेती करने के लिए, इसका सेटअप बनाना बहुत आसान और सस्ता है. इसके लिए, बहुत ज़्यादा जगह की ज़रूरत नहीं होती है. आप पीवीसी पाइप और पानी के एक पंप की सहायता से अपने घर पर ही हाइड्रोपोनिक फ़ार्म स्थापित कर सकते हैं. पीवीसी पाइप का स्ट्रक्चर को आप खुद घर पर भी बना सकते हैं या आप इसे बाज़ार से भी खरीद सकते हैं. इसको बनाने के लिए आप गोल पाइप या चपटे आकार के पाइप का इस्तेमाल कर सकते हैं. इन पाइपों का सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए ज़रूरी बात ये है कि इन पाइपों का एक-दुसरे के साथ कनेक्शन ठीक से होना चाहिए, क्योंकि इन पाइपों में लगातार पानी का बहाव बना रहना चाहिए. इन पाइप में जगह-जगह पर छेद किए जाते हैं, जिनमें पौधे उगाए जाते हैं. अगर पाइप के छेद को थोड़ा ऊपर की ओर उठाएंगे, तो वे छेद एक बाल्टी की तरह दिखाई देंगे.
पाइप को भरने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री-
यह खेती ज़मीन पर नहीं होती है, इसलिए इसको बिना मिट्टी की खेती भी कहते हैं. हालांकि, पाइप में पौधों को रोकने के लिए कुछ मिट्टी की ज़रूरत पड़ती है. यहां आपको यह ध्यान रखना होगा कि कुछ ऐसा आपको पाइप में डालना है जो नमी को बरकरार रख सके. साथ ही, पौधों की जड़ें काटकर मिट्टी को आगे बहा न ले जाएं. इसमें, आप नारियल का भूसा इस्तेमाल कर सकते हैं. यहां बजरी को इस्तेमाल में नहीं ले सकते हैं.
इस खेती का तकनीकी सिस्टम-
पाइपो के ज़रिए होने वाली इस खेती में ऊपर के तरफ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं. इस पानी में वह हर पोषक तत्व घोला जाता है जिसकी पौधों को ज़रूरत होती है. यह तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है. इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्ज़ियां और फल उगाए जा सकते हैं.
खेती करने के लिए जगह
भारत की बढ़ती आबादी से आज हर कोई वाकिफ़ है और बढ़ती आबादी पूरे देश के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है. जनसंख्या के बढ़ने से जीवन जीने के साधनों (resources) में कमी आती जा रही है, जैसे कि पानी, लागत, और जगह की. देश भर में खेती करने की जगह पर बड़े-बड़े मॉल और सोसायटी का निर्माण हो रहा है. जिस वजह से खेत कुछ ही प्रतिशत रह गए हैं. इसलिए, ऐसी परिस्थिति में कोई न कोई ऐसी तकनीक चाहिए जिससे कम जगह में ज़्यादा पैदावार कर सकें. साथ ही, ऐसी उपज करें जो स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद साबित हो. इसी रिसर्च के चलते वैज्ञानिक William Frederick Gericke ने 1937 में एक ऐसी तकनीक खोज निकाली जिससे कम जगह में ज़्यादा पैदावार की जा सकती हैं. वह है हाइड्रोपोनिक खेती. इस खेती में तीन फ़ीट तक के पौधों के लिए कम से कम 25 से 30 इंच की जगह चाहिए होगी. इस हिसाब से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आपके पास जो जगह मौजूद है उसमें कितने पौधे लगा सकते हैं. इस खेती को लोग घर या छत पर भी कर सकते हैं, इसलिए ज़्यादातर लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं. दूसरा, फ़ायदा यह है कि लोग इस खेती से लाखों रुपये महीना कमा रहे हैं. तीन फ़ीट से कम ऊंचाई के पौधों के लिए 18 इंच से 30 इंच की जगह चाहिए होती है. अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो पैदावार कम होगी.
हाइड्रोपोनिक खेती में लगने वाली लागत
अगर आप 100 वर्ग फ़ुट में हाइड्रोपोनिक सिस्टम लगाना चाहते हैं, तो आपको 50-60 हज़ार रुपये खर्च करने होंगे. 100 वर्ग फ़ुट में आप करीब 200 पौधे उगा सकते हैं. हालांकि, आपके पास जगह होने पर भी आप छोटा हाइड्रोपोनिक सिस्टम लगा सकते हैं. अब यह तकनीक इतनी ज़्यादा फ़ैल चुकी है कि बाज़ार में बने-बनाए हाइड्रोपोनिक सिस्टम के साथ-साथ आपकी ज़रूरत के हिसाब से हाइड्रोपोनिक सिस्टम मुहैया कराया जा रहा है.
हाइड्रोपोनिक खेती में आने वाला खर्चा इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह की तकनीकी इस्तेमाल करने जा रहे हैं. हाइड्रोपोनिक सिस्टम में मुख्य खर्चा पॉलीहाउस निर्माण, कूलिंग, हीटिंग, और ग्रोविंग में आता हैं. यह खर्चा वन टाइम इन्वेस्टमेंट है, जिसमें यह तकनीक स्थापित करने के बाद सिर्फ़ मेंटनेस का खर्चा आता है.
अगर हम एक बड़े फ़ार्म (3500 वर्ग मीटर) की बात करें, तो इसमें आपको यह बिज़नेस सेक्टर के तौर पर स्टार्ट करना पड़ेगा. इसमें, आपको कम से कम 40-50 लाख रुपये निवेश करना होगा. अलग- अलग क्षेत्र में अलग तरह का खर्चा आता है, जैसे अगर कोई राजस्थान में हाइड्रोपोनिक फ़ार्म को स्थापित करता है, तो उस जगह गर्मी में कूलिंग पर ज़्यादा खर्च करना पड़ेगा.
सरकार की तरफ़ से मिलने वाली सहायता-
कुछ दशकों से खेतों में ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में अनाज पैदा करने के लिए, रासायनिक केमिकल और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किया जा रहा था. इस वजह से खेतों की उपजाऊ क्षमता भी लगातार कम होती जा रही है और उन अनाज या सब्ज़ियों को खाने वाले लोगों की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इसलिए, केंद्र सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं बनाई है. जैविक खेती में कीटनाशक दवाईयां और केमिकल युक्त खाद का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि यह मिट्टी के बजाए पूरी तरह से पानी में की जाती है. इस तरह से हाइड्रोपोनिक तकनीक भी जैविक खेती के अन्तर्गत आती है. इसलिए, सरकार की तरफ़ से काफ़ी तरह की योजनाएं होती है, जिसमें आप अपने-अपने क्षेत्र के हिसाब से इन योजनाओं का हिस्सा बन सकते हैं. इसके माध्यम से आपकी लागत न के बराबर आती है.
इस खेती में इस्तेमाल होने वाले पोषक तत्वों, दवाईयां, और खाद्य पदार्थ-
यह हाइड्रोपोनिक खेती का मुख्य हिस्सा होता है. एक बार जब आप यह तय कर लेते हैं कि आपको कौनसा पौधा रोपना है, तो आपको उसके अनुसार पोषक तत्वों का इस्तेमाल करना होगा. जब पौधा ज़मीन पर उगता है, तो उसको सभी पोषक तत्वों की पूर्ति ज़मीन से हो जाती है. लेकिन, यहां पौधों को कौनसे पोषक तत्व मिलेंगे यह पूरी तरह से आपको तय करना है. एक स्वस्थ पौधे को भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम, फ़ॉसफ़ोरस, कैल्शियम, और अन्य पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है. हर एक अलग पौधे को अलग तरह के पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है. इसके लिए, आप पहले से ही यह पक्का कर लें कि आप कौनसा पौधा उगाना चाहते हैं और उसको किस तरह के पोषक तत्वों की ज़रूरत पड़ेगी. जैसे कि हमने ऊपर बताया कि हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पौधों को पानी पाइप के माध्यम से दिया जाता हैं, इसलिए इसी पानी में उन पोषक तत्वों को घोल दिया जाता है.
पानी की मात्रा-
हाइड्रोपोनिक खेती पूरी तरह से पानी पर ही निर्भर होती है. हालांकि, इसके लिए पानी की ज़्यादा ज़रूरत नहीं होती है. हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पानी पर खेती इसलिए भी की जाती है, क्योंकि पौधों की जड़ें हमेशा गीली रहे और तना सुखा रहे.
इस सिस्टम में पानी पाइप के माध्यम से बहता है, तो यहां ध्यान रखने की बात यह है कि आपको पानी का ph मान संतुलन में रखना होगा. एक सही पानी का ph मान 7 के आस-पास होता है. इस पानी की ph वैल्यू को बढ़ाने और घटाने के लिए, इनमें अलग से केमिकल डाले जाते हैं.
दूसरा, पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भरपूर होनी चाहिए. आपने कभी गौर किया होगा कि ज़मीन पर पौधे की जड़ों को भी कुछ समय बाद थोड़ा-थोड़ा खोदा जाता है, ताकि उनको ऑक्सीजन मिल सके. अगर इस सिस्टम में पौधे की जड़ें पानी में डूबी रहती है, तो पानी से ही ऑक्सीजन की सप्लाई होती रहती है. पानी में ऑक्सीजन को घोलने के लिए आप ऑक्सीजन पंप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
घर के अंदर (Indoor) वाले हाइड्रोपोनिक सिस्टम में लाइट का उपयोग-
कुछ लोग घर के अन्दर हाइड्रोपोनिक सिस्टम को स्थापित करते हैं, जिसमें पौधों को प्रकाश देने के लिए खास तरह की ट्यूबलाइट लगाई जाती है. हाइड्रोपोनिक सिस्टम में एलईडी, फ़्लोरेसेंट, मेटल हैलाइड, और हाई प्रेशर सोडियम जैसे साधनों को लगाया जाता है.
इंडोर हाइड्रोपोनिक सिस्टम में रोशनी को मैनेज करना एक तरह से सबसे ज़्यादा मंहगा (High investment) पड़ सकता है, इसलिए ज़्यादातर लोग इसको घर से बाहर या छत पर ही लगाते हैं. भारत जैसे देश में हाइड्रोपोनिक सिस्टम को आउटडोर ही स्थापित किया जाता है, क्योंकि यहां बिजली की अनियमितता बनी रहती है.
इस खेती के लिए सही जलवायु
इस हाइड्रोपोनिक सिस्टम में आपको जलवायु का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. अगर जलवायु को बैलेंस नहीं किया जाएगा, तो पौधे मुरझा सकते हैं या उनको कोई रोग लग सकता है. सामान्य जलवायु को 25 से 35 डिग्री तक रखा जाता है. इसके लिए बड़े-बड़े कवर लगाये जाते हैं, जिसे पॉलीहाउस कहते हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती में पौधे 80 प्रतिशत आद्रता में रहते हैं. यह ज़रूरी नहीं कि इन पौधों को सूर्य के प्रकाश की सीधे तौर पर ज़रूरत पड़े. इसकी जलवायु के लिए बड़े-बड़े हाइड्रोपोनिक के ग्रीन हाउस फ़ार्म भी तैयार किये जाते हैं.
पौधों का रख-रखाव
इस तरह से आपको पौधे लगाने के बाद, समय-समय पर उनकी जांच करते रहना होगा. हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने से पहले और उसके बाद भी पौधे, फ़र्टिलाइजर, पानी का ph, पानी में ऑक्सीजन इन सभी का सही तरीके से ख्याल रखना पड़ता है.अगर पौधों में कोई कमज़ोरी या बीमारी के लक्षण दिखते हैं, तो आपको अपने नज़दीकी एग्रीकल्चरल डिपार्टमेंट से संपर्क करना चाहिए या आपको पहले से इसकी ट्रेनिंग लेनी होगी.
इस खेती के इस्तेमाल का बाज़ार-
हाइड्रोपोनिक खेती के लिए सबसे पहले आपको एक बेहतर ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है. इसकी ट्रेनिंग के बाद, आप भी हाइड्रोपोनिक स्पेशलिस्ट बन सकते हैं. इसके लिए, आपको किसी भी तरह की डिग्री की ज़रूरत नहीं होती है. किसी भी पहले से स्थापित किए गए हाइड्रोपोनिक सेंटर में जाकर, आप इसकी ट्रेनिंग ले सकते हैं.
एक बार जब आप ट्रेनिंग ले लेते हैं, तो इसके बाद आपको कोई ऐसे पौधे को टारगेट करना चाहिए, जिसे आप अपने इलाके में आसानी से उगा सकते हैं. अगर आप ग्रामीण इलाके में इसकी शुरुआत करने वाले हैं, तो आपको मार्केट रिसर्च करनी चाहिए. इसके बाद, एक अच्छे निवेश के साथ हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत की जा सकती हैं.
पेड़- पौधों के प्रकार
हाइड्रोपोनिक खेती में सभी प्रकार के पौधे नहीं उगाये जा सकते हैं. हाइड्रोपोनिक खेती में तुलसी, ककड़ी, टमाटर, काली मिर्च, स्ट्राबेरी, शिमला मिर्ची जैसे पौधे उगाये जा सकते हैं.
इस खेती से उगने वाली सब्ज़ियों की कीमत और इस पर मिलने वाला मार्ज़िन-
इस खेती की पैदावर फलों, और सब्ज़ियों की कीमत, बाज़ार में मिलने वाली मिट्टी की खेती से पैदावर की तुलना में कम होनी चाहिए, ताकि लोग ज़्यादा से ज़्यादा इसे खरीद पाएं. एक एवरेज रिसर्च से पाया गया है कि इनकी कीमत सस्ती रखकर भी आप मोटा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. 4 या 5 फ़ीट लम्बा मिनी गार्डन से आप 5 से 10 हज़ार तक कमा सकते हैं. बड़े फ़ार्म से लाखों रूपये कमाए जा सकते हैं.
इस खेती में आने वाली दिक्कतें-
हाइड्रोपोनिक के फ़ार्म को स्थापित करना एक महंगा काम हो सकता है. अगर फ़ार्म बड़ा है, तो तापमान को नियंत्रित करने के लिए बड़े-बड़े कूलिंग सिस्टम और हीटर सिस्टम लगाये जाते हैं, जो कि महंगे होते है. इसके अलावा पॉलीहाउस को स्थापित करना भी एक महंगा काम होता है. कुल मिलाकर हाइड्रोपोनिक फ़ार्म को स्थापित करने की लागत ज़्यादा है.
इसमें लगाए गए पौधों को दिए जाने वाले पोषक तत्वों में अनियमितता हो जाए, तो ये विषाक्त हो सकते हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती का इतिहास-
हाइड्रोपोनिक खेती की शुरूआत 1937 में हुई थी. हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत सबसे पहले इराक में की गई थी. इसके बाद, यह खेती सबसे ज्यादा नीदरलैंड में की जाती है.
इस क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाले लोग-
इस खेती को करने से पहले जिन लोगों ने इसके ज़रिए कमाई की है उन लोगों से मिले और ज़रूरी जानकारी पाएं
इस क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाले भारतीय नौसेना में अपनी सेवा दे चुके अंकित गुप्ता ने अपने रिटायरमेंट के बाद बैंक में बतौर क्लर्क काम करना शुरू किया था. इसके साथ ही, उन्हें बागवानी करने का शौक बचपन से था, जिसके चलते वो हमेशा से अपने घर की छत पर बागवानी करते थे. इस तरह सबसे पहले भारत में अंकित गुप्ता ने ही हाइड्रोपोनिक खेती का सेटअप लगाया और इसके बाद खूब मुनाफ़ा भी कमाया. इनके अलावा, पंजाब के गुरुकिरपाल भी हाइड्रोपोनिक खेती में बेहतरीन गुरू का रोल अदा कर सकते हैं. अपनी सफल कंपनी बेचकर हाइड्रोपोनिक खेती में अपना करियर बनाने वाले कर्नाटक के अजय भी आपको बेहतरीन जानकारी मुहैया करा सकते हैं. आप सोशल मीडिया के माध्यम से या फिर किसी दूसरे तरीके से संपर्क कर सकते हैं और इस खेती में आने वाली दिक्कतें और कमाई के बारे में पूरी जानकारी पा सकते हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती का निष्कर्ष-
धीरे-धीरे इस खेती का चलन बढ़ रहा है, जिससे काफ़ी लाभ मिल रहा है. पहले सरकार इस खेती के पक्ष में नहीं थी, मगर इसके प्रति लोगों का बढ़ता रुझान देख इसके पक्ष में आ रही है. साथ ही, इस खेती को शहर में भी किया जा सकता है. इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है.